EPFO को लेकर आई बड़ी उपडेट! सरकार ने जारी किया नया गाइडलाइन

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में अब बड़े बदलाव की तैयारी हो रही है, जिन्हें ईपीएफओ 3.0 के तहत लागू किया जा सकता है। सरकार कई अहम सुधारों पर विचार कर रही है, जिनमें से कुछ प्रमुख बदलावों में पीएफ का पैसा एटीएम से निकालने की सुविधा, पीएफ अकाउंट में इक्विटी निवेश, और कर्मचारियों के अंशदान की सीमा को खत्म करना शामिल है।

हाल ही में यह चर्चा हो रही है कि कर्मचारियों के 12 फीसदी अंशदान वाले नियम को बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है। अगर यह कदम उठाया जाता है तो कर्मचारियों को पेंशन और रिटायरमेंट फंड में ज्यादा रकम मिलेगी, जिससे उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य यह है कि कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद ज्यादा पेंशन मिले, ताकि वे बिना किसी वित्तीय चिंता के अपने जीवन का आनंद ले सकें।

कितना योगदान देना होगा कर्मचारियों को जानिए

वर्तमान में, कर्मचारियों को हर महीने अपने पीएफ खाते में 12% का योगदान देना होता है। इसके समान ही, नियोक्ता भी 12% का अंशदान आपके पीएफ अकाउंट में जमा करता है। यह योगदान आपके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा, सरकार हर साल आपके पीएफ खाते पर ब्याज जोड़ती है, जो आपके रिटायरमेंट फंड को और मजबूत बनाता है। अब सरकार इस 12% की सीमा को खत्म करने पर विचार कर रही है। 

क्या सिर्फ कर्मचारियों के लिए ही होगा बदलाव जानिए 

सरकार पीएफ योगदान की सीमा में बदलाव करने की योजना बना रही है, लेकिन यह बदलाव सिर्फ कर्मचारियों के लिए होगा। नियोक्ताओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। इस फैसले से देश के करीब 6.7 करोड़ कर्मचारियों को फायदा होने की उम्मीद है।

सरकार चाहती है कि कर्मचारी अपनी आय का बड़ा हिस्सा पीएफ खाते में जमा करें, ताकि उनका भविष्य अधिक सुरक्षित हो। इस बदलाव से कर्मचारी अपनी जरूरत और इच्छानुसार अधिक योगदान कर सकेंगे, जिससे रिटायरमेंट फंड और पेंशन में भी बढ़ोतरी होगी। यह कदम कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है।

नियोक्ता का योगदान क्या है जानिए 

ईपीएफओ के नियमों के तहत नियोक्ता अपने 12% योगदान में से 8.33% राशि कर्मचारी के पेंशन स्कीम अकाउंट में जमा करता है। बाकी 3.67% राशि कर्मचारी के पीएफ खाते में हर महीने जोड़ी जाती है। हालांकि, पेंशन स्कीम के लिए यह योगदान 15,000 रुपये की अधिकतम सैलरी सीमा पर ही लागू होता है। यह योगदान नियोक्ता की ओर से कर्मचारियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए किया जाता है। 

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